सोमवार, 25 अप्रैल 2011

समय

किसी शायर ने क्या खूब कहा है.............
'मुझसे वो चाल चल गया कैसे, पास आकर बदल गया कैसे
एक लम्हे को आँख झपकी थी, सारा मंज़र बदल गया कैसे
वक़्त भी खूब जादूगरी दिखाता है, वरना ये दिल बहल गया कैसे"

                  यही है "वक़्त"..........जिसको समझ पाना हर एक व्यक्ति के लिए संभव नहीं. जीवन में जब भी कुछ बुरा हो जाता है तो अक्सर लोग यही कहते हैं कि "अरे! समय ही ख़राब चल रहा है ............" , ऐसा नहीं है. समय तो अपनी ही गति से चलता रहता है, बस हम ही समय के अनुकूल नहीं रह जाते हैं. समय की रफ़्तार को पकड़ पाना किसी के वश में नहीं होता है लेकिन समय को पहचानकर उसके अनुकूल आचरण करना तो हमारे ही हाथ है. परन्तु ये भी सत्य है कि समय को पहचानने की छमता  किसी-किसी में ही होती है. व्यक्ति जीवन में सब कुछ अपने अनुभव से ही सीखता है. बच्चा भी जब स्वयं  स्कूल पढने जाता है तब ही वह विद्यालय  -जीवन  का अनुभव प्राप्त करता है. इसी प्रकार जब हम समय की अनुकूलता और प्रतिकूलता; दोनों ही देख लेते हैं तब जाकर ही समय की उपयुक्तता का भान होता है. अन्यथा हर व्यक्ति स्वयं को अत्यंत सशक्त समझता रहता है. अतः मेरे विचार से हर व्यक्ति के जीवन में उस वस्तु,व्यक्ति,स्थान का छिनना या खो जाना नितांत ज़रूरी है जिससे वह बहुत प्रेम करता है या जिससे उसे अत्यंत ख़ुशी प्राप्त होती है......
                   जब जीवन में किसी का अभाव आरम्भ से ही हो तो उपर्युक्त स्थिति असंभव है परन्तु यदि कोई ऐसी घटना हो जिसमे आपकी मनपसंद चीज़ दूर चली जाए, या फिर आप ये पहचान ही ना पाए कि उस चीज़ की आपके जीवन में क्या अहमियत थी, या फिर अपने व्यर्थ के अहम् के कारण उसे गवां दें .........तब ही जाकर व्यक्ति उस समय को याद करता है और यहीं से उसके जीवन में एक नया अध्याय जुड़ता है .............."अनुभव".
                  व्यक्ति उम्र या बढ़ते समय के साथ अनुभवी नहीं बनता  बल्कि  उस स्थिति से गुज़रकर अनुभवी बनता है. समझाना और समझना  एक शब्द के दो प्रयोग तो  हो सकते हैं लेकिन व्यावहारिक जीवन में दो विपरीत कूल हैं जो एक दूसरे को देखते तो हैं पर मिलते कभी नहीं हैं.........पढ़कर ज्ञानी बनना आसान है, लेकिन उसी किताब को प्राप्त सम्बंधित  अनुभव  के बाद पढने की अनुभूति ही अलग है.अतः जब भी जीवन में समय आपके अनुकूल ना हो तो उसे ईश्वर द्वारा प्रदत्त  पाठ समझें और उसमे रोने के बजाय महसूस करें साथ ही उसमे क्या कुछ सीखने को मिल रहा है; उसे समझे.
                 कभी-कभी भगवान हमारे अहम् को तोड़ने के लिए भी ऐसी परिस्थितियां हमारे सामने लाता है, या फिर हमें आने वाले समय के अनुसार परिपक्व करने के लिए भी...........

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