रविवार, 17 अगस्त 2014

जन्मदिन मुबारक हो 'नागरजी



आज गंगा जमुनी संस्कृति के पोषक, अवध की अनमोल धरोहर और शहर-ए-लखनऊ की शान महान साहित्यकार  'पं.अमृतलाल नागर' जी की ९९वीं  जयंती है।  नागर जी के दर्शन का सौभाग्य मुझे बी.ए. करने (१९८७) के दौरान प्राप्त हुआ था, जब मैं अपने साहित्यकार ताऊ जी  'प.गंगारत्न पाण्डेय' जी के साथ चौक स्थित उनके निवास पर एक साहित्यिक गोष्ठी में गयी थी.… अपने तख़्त पर किसी बादशाह की तरह मसनद की टेक लगाए हुए , पान रचे बैठे थे। उन्होंने मुझे अपना उपन्यास ''बूँद और समुद्र'' पढ़ने को दिया था और हँसते हुए कहा था, '' वापस कर देना''....... लकिन मैं किताबों की शुरू से ही लालची रही हूँ इसलिए वह आज तक मेरे पास उनके आशीर्वाद के रूप में है।  लेकिन तब मैं नहीं जानती थी कि ये मात्र पढ़ने के लिए दिया गया कोई उपन्यास नहीं है, अपितु एक दिन मैं उसी पुस्तक को आधार और आदेश मानकर अपना शोध-कार्य करूंगी। दुबारा उनके जीवित रहते उनसे मुलाक़ात का अवसर नहीं प्राप्त हो पाया क्यूंकि ताउजी अमरीका चले गए थे।  हाँ, १९९० में मेडिकल कॉलेज में उनको देखने अवश्य गयी थी,  लेकिन कोई भी बात ना कर सकी थी क्यूंकि डॉ ने मना कर  दिया  था।  वह तब  भी साहित्यिक वीथिका में उलझे रहते थे, उनकी ज़िंदादिली देखकर कोई नहीं कह सकता था कि  उन्हें जानलेवा कैंसर है।
उनकी कृतियों  में जिस गंगा जमुनी संस्कृति की बात है वह आज के सामजिक परिदृश्य में अत्यंत आवश्यक है।  उनके बूँद और समुद्र, सुहाग के नूपुर, अमृत और विष, मानस का हंस, और  विशेषतः 'नाचौ बहुत गुपाल' जितनी बार पढ़िए , रोमांच हो आता है।  कहानियों पर तो टीवी सीरियल बन ही चुके हैं और उनका सर्वेक्षण कार्य 'ग़दर के फूल' और 'ये कोठेवालियां', ये सिद्ध कर देता है की लेखन मात्र शान्ति की अवस्था में एकाग्रचित्त होकर सोचते हुए करने का कार्य नहीं है..... …।
अपना शोध-प्रबंध मैंने '' नगर जी के कथा- साहित्य में अवध- संस्कृति'' पर ही लिखा और उस सिलसिले मैं जाने कितनी बार चौक स्थित उनके उस घर गयी जहाँ उनकी यादों को उनकी पौत्री ने यथावत रखा हुआ था। ये मेरा दुर्भाग्य ही है कि अपनी व्यस्तताओं के चलते  उसको मैं आज तक किताब के रूप में प्रकाशित ना करवा सकी लेकिन आज उनके ९९वी जयंती पर श्रद्धांजलि स्वरुप वचन लेती हूँ कि  जन्मशती पर  उनके उसी  निवास पर, उसी तख़्त पर, उन पर लिखी किताब रखकर आऊँगी।
गंगा जमुनी संस्कृति के चतुर चितेरे नागरजी को मेरा शत शत नमन।
                                                                                                           डॉ रागिनी मिश्र 
                                                                 

1 टिप्पणी: